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Last Updated on 03/04/2023 by Sarvan Kumar
William Crooke ने 1896 में लिखी अपनी किताब “The tribes and castes of the North-Western Provinces and Oudh” में खत्री को एक व्यापारिक जाति बताया है, और इनकी उत्पति पंजाब से बतायी है. Sir G Campbell के द्वारा 1866 में लिखे एक लेख के हवाला देते हुए – उन्होंने लिखा है हालांकि व्यापार उनका मुख्य पेशा है, पर खत्री होने के व्यापक मायने है. उस वक़्त पंजाब (जो कि अब ज्यादा पाकिस्तान में है) पढ़े लिखें वाले जितने भी काम थे वो अधिकतर खत्री ही कर रहे थे. यहां तक कि सिखों के सारे गुरु खत्री है . गुरु नानक , गुरु गोविंद सिंह खत्री ही थे.आज के सोढ़ी और बेदी खत्री ही हैं. आप अंदाजा लगा सकते है संख्या कम होने के बावजूद खत्री उस ज़माने भी कितना आगे थे. आइए जानते हैं खत्री समाज का इतिहास , किस वर्ग में आते हैं खत्री?
किस वर्ग में आते हैं खत्री?
Crooke ने अपने किताब में लिखा है- आम तौर पर खत्री लड़ाकू प्रवृति के नहीं होते हैं पर जरूरत पड़ने पर तलवार का इस्तेमाल करने में काफी सक्षम है. यहां अंग्रजी विद्वान गलत कर गए खत्री तो विशुद्ध योद्धा थे. एक ऐसा योद्धा जब ये युद्ध मैदान में उतरते तो दुश्मनों में हड़कंप मच जाती थी. सरदार हरि सिंह नलवा का नाम तोअपने सुना ही होगा वे महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे , अफगानी उनसे इतना खौफ खाते थे की जब बच्चे रोते थे उनकी मां कहती थीं चुप हो जा वर्ना नलवा आ जाएगा. इतना होने पर भी अंग्रेज खत्री को क्षत्रिय मानने से इंकार करते थे. उनका कहना था ये क्षत्रिय तो हो ही नहीं सकते, ये तो व्यापारी हैं. ऐसा ही कुछ H. H. Risley की किताब The Tribes and Castes of Bengal volume 1 में लिखा है. Risley ने खत्री को धर्मशास्त्रों में वर्णित चार वर्णों में वैश्य वर्ण में रखा. ऐसा वे दो कारणों से कर रहे थे एक तो साजिशन ऐसा कर रहे थे जो की हम आपको आगे बताएंगे और दूसरा वे भ्रमित थे. दरअसल खत्री हर एक चीज़ में अव्वल थे और इसलिए उनकी सही वर्ण का पता लगाना काफी मुश्किल था. प्रशानिक सेवा, लेखा विभाग, व्यापार आदि कई क्षेत्रों में अपना उपस्थिति दर्ज करा चुके थे. अकबर के मशहूर मंत्री राजा टोडरमल मुग़ल काल में सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे, टोडरमल खत्री जाति के थे कुछ लोग उन्हें कायस्थ भी बताते हैं, पर उनका वास्तविक नाम ‘अल्ल टण्डन’ था. लोग इसलिए भ्रमित हो जाते थे कि हिसाब – किताब तो कायस्थों का काम है. आप सोचिए तलवार से लेकर कलम और तराजू तक सब में इनकी महारत हासिल थी. Crookes ने अपने किताब में खत्रियों के लिए तारीफों के पूल बांधे है. उन्होंने लिखा है की Khatris are one of the most acute, energetic, and remarkable races in India,. वे कहते हैं खत्री के पास, पंजाब (पाकिस्तान का पंजाब भी) अधिकांश अफगानिस्तान का पूरा व्यापार है। खत्री के बिना कोई भी गाँव नहीं चल सकता, जो हिसाब-किताब रखता है, बैंकिंग व्यवसाय करता है, अनाज खरीदता है और बेचता है. वे किन परस्थितियों में तलवारें छोड़ दी या लड़ाकू खत्रियों ने अपना नया पहचान बना लिया इसका खुलासा हम आगे करेंगे.

खत्री कहां पाए जाते है?
भारत के अलावा यह अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी निवास करते हैं. अफगानिस्तान में पाए जाने वाले हिंदू और सिख मुख्य रूप से खत्री और अरोड़ा मूल के हैं.भारत में यह मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली NCR, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में निवास करते हैं. पाकिस्तान में यह मुख्य रूप से बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में पाए जाते हैं.
खत्री की उत्पत्ति कैसे हुई?
खत्री शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द “क्षत्रिय” से हुई है. भाषाविद बीएन पूरी के अनुसार, ‘खत्री” और “क्षत्रिय” शब्द पर्यायवाची हैं. इतिहासकार W.H McLeod और Louis Fenech के अनुसार, खत्री क्षत्रिय शब्द का एक पंजाबी रूप है.
खत्री समाज का इतिहास
एक व्यापारिक वर्ग : शब्द के व्युत्पत्ति के आधार पर खत्री समाज के लोग क्षत्रिय होने का दावा करते हैं. लेकिन अधिकांश इतिहासकारों और विद्वानों का मत है कि क्षत्रिय उत्पत्ति के बावजूद खत्री एक व्यापारिक वर्ग है. और यह पारंपरिक रूप से व्यापारी और सरकारी अधिकारी थे. पंजाब के संदर्भ में खत्री “बेदी, भल्ला और सोढ़ी सहित अन्य व्यापारी जातियों के समूह” को संदर्भित करता है.
भगवान राम के वंशज: गुरु गोविंद सिंह द्वारा रचित दशम ग्रन्थ नामक पुस्तक के एक भाग का “बचित्तर नाटक” के अनुसार, खत्री जाति की एक उपजाति “बेदी” श्री राम के पुत्र कुश के वंशज हैं. इसी तरह से, एक अन्य किवदंती के अनुसार, सोढ़ी उपजाति श्री राम के दूसरे पुत्र लव का वंशज होने का दावा करती है.
खत्री समाज के बारे में अधिक जानकारी के लिए किताब पढ़ें- History of Khatris | KHATRIYA (क्षत्रिय ) PARAMPARA ( in HINDI )
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