- संभुधनु – शिव का धनुष
- भंजनिहारा -तोड़ने वाला
- होइहि-होगा
- केउ -कोई
- आयेसु-आज्ञा
- काह-क्यों ,काहे
- कहिअ – कहते हो
- किन -क्यों नहीं
- मोही -मुझे
- रिसाई क्रोध करके
- कोही-क्रोधी
- सेवकाई -सेवा
- अरिकरनी -शत्रुता का कर्म
- करि -करके
- लराई -लड़ाई
- जेहि – जिसने
- तोरा -तोड़ा
- सम -समान
- सो-वह
- रिपु -शत्रु
- मोरा -मेरा
- सो-उसे
- बिलगाऊ-अलग करके
- बिहाइ -छोड़कर
- जैहहिं -जाएँगे
- लखन-लक्ष्मण
- मुसुकाने -मुस्कुराने लगा
- परसुधरहि -फरसा धारण करने वाले को
- अवमाने -अपमान करके
- बहु -बहुत
- धनुही -धनुष
- तोरी-तोड़े
- लरिकाई -लड़कपन में ,बचपन में
- कबहुँ -कभी
- असि -ऐसा
- रिस -क्रोध
- कीन्हि -किया
- गोसाईं – स्वामी
- येहि -इस
- केहि -किस
- हेतू – कारण
- भृगुकुलकेतू -भृगु वंश के महान पुरुष
- नृपबालक -राजा का बेटा
- कालबस-मृत्यु के वश में
- बोलत – बोलता है
- तोहि -तुझ से
- संभार -संभलकर
- धनुही-छोटा धनुष
- सम -बराबर
- त्रिपुरारीधनु -शिव जी का धनुष
- बिदित -परिचित
- सकल -सारा
Ram lakshman parshuram samvad bhavarthराम लक्ष्मण परशुराम संवाद भावार्थ
भावार्थ – लक्ष्मण परशुराम जी से कहते हैं कि हे मुनिवर! आपके शील स्वभाव से पूरा संसार भली-भाँति परिचित है। आप अपने माता-पिता के कर्ज से तो पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं, परन्तु अभी तक आपके ऊपर गुरु-ऋण बाकी बचा हुआ है। जिसे आप जल्द से जल्द उतारना चाहते हैं और इसी कारण आप मेरा वध करने पर तुले हुए हैं।यह ठीक भी है, क्योंकि बहुत दिन हो चुके हैं, अब तक तो आपके ऊपर गुरु-ऋण का बहुत ब्याज चढ़ चुका होगा। तो फिर देर करने की ज़रूरत नहीं है, किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए। मैं देर किए बिना अपनी थैली खोल कर सारी धन राशि चुका दूँगा।लक्ष्मण के ये कठोर वचन सुनकर परशुराम अपने क्रोध की आग में जलने लगते हैं और अपने फरसे को पकड़ कर आक्रमण की मुद्रा में आते हैं, जिसे देखकर दरबार में उपस्थित सारे लोग हाय-हाय करने लगते हैं। यह देख कर लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं कि आप मुझे अपना फरसा दिखाकर भयभीत करना चाहते हैं और मैं यहाँ आपको ब्राह्मण समझकर आप से युद्ध नहीं करना चाहता।ऐसा प्रतीत होता है, मानो आपका अभी तक युद्ध भूमि में किसी पराक्रमी से पाला नहीं पड़ा। इसलिए आप अपने आप को बहुत शूरवीर समझ रहे हैं। यह बात सुनकर दरबार में उपस्थित सारे लोग अनुचित-अनुचित कह कर पुकारने लगते हैं और श्री राम अपनी आँखों के इशारे से लक्ष्मण जी को चुप होने का इशारा करते हैं।इस प्रकार लक्षमण द्वारा कहा गया प्रत्येक वचन आग में घी की आहुति के सामान था और परशुराम जी को अत्यंत क्रोधित होते देखकर श्री राम ने अपने शीतल वचनों से उनकी क्रोधाग्नि को शांत किया।