यह दलील कहती है कि हमारे लिंग (जेंडर) का संबंध हमारी यौनिकता (सेक्स) से है और कि हमारी जीन में यह एक स्पष्ट पहचान के साथ दर्ज है जो जीवनकाल में कभी नहीं बदलती है. एक तरफ औरत है और दूसरी तरफ आदमी – आप या तो राजकुमारी हैं या एक योद्धा – बीच में कुछ और नहीं. और आपका इस पर जरा भी बस नही है. आप पैदा ही अपने सेक्स के साथ हुए हैं. बात खत्म.
यह दलील देने वाले लोग अकसर विज्ञान का, खासतौर पर जीववविज्ञान का सहारा लेकर ऐसा कहते हैं. लेकिन आज इस पर एक अलग लेकिन व्यापक वैज्ञानिक सर्वसम्मति बन चुकी हैः सेक्स एक स्पेक्ट्रम है. आप एक तस्वीर में औरत और आदमी को दो विपरीत कोनों में देखते हैं लेकिन उनके दरम्यान बहुत कुछ चल रहा होता है.
क्रोमोसोम का खेल है सब
एक्सएक्स क्रोमोसोम यानी स्त्री, एक्सवाई क्रोमोसोम यानी पुरुष. सेक्स ऐसे ही निर्धारित होता है. यह हम स्कूल में पढ़ते हैं. एक्सएक्स क्रोमोसोम वाले व्यक्तियों यानी स्त्रियों में गर्भ के भीतर ही योनि, गर्भाशय और अंडाशय बन जाते हैं. एक्सवाई यानी पुरुषों में शिश्न और अंडकोष बनते हैं. जाहिर है, एक्स क्रोमसोम्स की अहमियत है लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है.
उदाहरण के लिए कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिनके शारीरिक लक्षण औरतों वाले होते हैं लेकिन उनकी कोशिकाओं में एक्सवाई क्रोमोसोम होते हैं, या ऐसे व्यक्ति जो पुरुष जैसे दिखते हैं लेकिन उनकी कोशिकाओं में एक्सएक्स क्रोमोसोम पाए जाते हैं.
वाई क्रोमोसोम के छोटे वाले सिरे में एक जीन स्थित होती है- एसआरवाई. कुछ अन्य कारकों के साथ वही तय करती है कि भ्रूण में अंडकोष बनेंगे या नहीं. माना किसी म्यूटेशन यानी तबदीली की वजह से यह जीन निर्धारित संदेश को नहीं पढ़ पाती या हरकत में नहीं आ पाती तो एक्सवाई क्रोमोसोम होने के बावजूद पुरुष भ्रूण में अंडकोष नहीं बनेंगे. अगर यह जीन एक्स क्रोमोसोम की ओर खिसक जाए (संभवतः कोशिका विभाजन के दौरान) और वह सक्रिय हो, तो एक्सएक्स क्रोमोसोम वाले व्यक्तियों यानी औरतों में अंडकोष बन जाएंगें.
इसलिए महज बाहरी तौर पर प्रकट यौन विशेषताओं के आधार पर, जन्म के बाद किया जाने वाला सेक्स निर्धारण कितना उचित है, यह सवाल भी उभरने लगता है.
हर चीज पहले से दर्ज नहीं होती
सेक्स क्रोमोसोम में कुदरती रूप से होने वाली तब्दीलियां बहुत सारी और विविध हैं. प्रकट यौन विशेषताओं जैसे जननांगो पर भी इसका असर पड़ता है. उस स्थिति में भी पूरी तरह विकसित शिश्न और क्लिटोरिस (भगांकुर) के बाह्य प्रत्यक्ष भाग के बीच कई श्रेणियां बन जाती हैं.
औरत या आदमी दोनों में से किसी भी सेक्स में स्पष्ट रूप से चिन्हित न किए जा सकने वाले व्यक्ति खुद को उभयलिंगी या मध्यलिंगी कहते हैं. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि विश्व आबादी के 1.7 प्रतिशत लोग इस समूह में आते हैं. लाल बालों वाले लोग भी कमोबेश इतने ही हैं.
2018 से जर्मनी में उभयलिंगी बच्चों को “भिन्न” के रूप में पंजीकृत किए जाने की व्यवस्था की गई है. ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश और भारत जैसे अन्य देश भी तीसरे सेक्स को मान्यता देते हैं. जीवनकाल के दरमियान भी सेक्स बदल सकता है. ज्यादा सटीक ढंग से कहें तो जननग्रंथि से जुड़ी पहचान बदल सकती है. चूहों पर एक अध्ययन के दौरान चीनी शोधकर्ताओं को यह बात पता चली.
इस बदलाव के लिए जिम्मेदार जीन्स हैं डीएमआरटी1 और एफओएक्सएल2. ये दोनों जीन अंडाशयों और अंडकोषों के विकास को आमतौर पर एक दूसरे के नैसर्गिक और अवश्यंभावी पूरक के रूप में संतुलित करती रहती हैं. इन जीन्स में होने वाला यह बदलाव वयस्क जानवरों में भी जननग्रंथि से जुड़ी प्रत्यक्ष सेक्स पहचान को बदल सकता है.
हार्मोन की बदलती धुनें
टेस्टोस्टेरोन होता है पुरुष हार्मोन और एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टरोन कहलाते हैं स्त्री हार्मोन. हम स्कूलों में यही पढ़ते हैं. लेकिन एक बार फिर, बात सिर्फ इतनी सी नहीं है. औरत, पुरुष और लैंगिक-भिन्न लोगों के शरीरों में ये सेक्स हार्मोन पाए जाते हैं. विभिन्न यौनिकता वाले लोगों में प्रोजेस्टरोन और एस्ट्राडियोल (सबसे ताकतवर कुदरती एस्ट्रोजन) के औसत स्तरों में बहुत कम ही अंतर होता है.
चिन्हित यौन लक्षणों पर केंद्रित अमेरिकी मनोविज्ञानियों के एक समीक्षा अध्ययन के मुताबिक हार्मोन के स्तरों में बाइनरी देखने की बजाय “प्रेग्नेंट” और “प्रेग्नेंट नहीं” के बीच अंतर को देखा जाना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भवती औरतें ही तमाम अन्य लोगों में मौजूद एस्ट्राडियोल और प्रोजेस्टरोन की तुलना में सामान्य से बहुत अलग हैं.
बच्चों के सेक्स हार्मोन में कोई खास अंतर नहीं होता है. प्यूबर्टी के बाद ही टेस्टोस्टेरोन के लेवल बढ़ने लगते हैं और पुरुषों में औरतों की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में होते हैं. लेकिन हाल के कुछ निष्कर्ष बताते हैं कि शोध की कमी के चलते लंबे समय तक इस अंतर को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता था. टेस्टोस्टेरोन सिर्फ पुरुषों में होते हैं और एस्ट्रोजन सिर्फ औरतों में – यह मानते हुए ही रुढ़िगत अध्ययन होते थे.
आज ऐसा नहीं है. लैंगिक विभिन्नताओं के बीच हार्मोनों के ओवरलैप पर नए शोध किए जा रहे हैं. यह भी पाया गया है कि हार्मोन का स्तर बाहरी फैक्टरों पर एक उल्लेखनीय हद तक निर्भर करता है और जैसा कि पहले माना जाता था, शुद्ध आनुवंशिकीय तौर पर पूर्व निर्धारित नहीं है.
पिता बनने जा रहे पुरुष में अपनी पार्टनर की गर्भावस्था के दौरान कम टेस्टोस्टेरोन बनते हैं. दूसरी ओर, स्त्री हार्मोन कहे जाने वाले एस्ट्राडियोल और प्रोजेस्टरोन, उस स्थिति में ज्यादा बनने लगते हैं जब व्यक्तियों के बीच वर्चस्व के लिए प्रतिस्पर्धा होने लगती है. यह व्यवहार रूढ़िगत तौर पर पुरुषोचित्त व्यवहार माना जाता है.
आपके दिमाग का जेंडर क्या है?
औरतों और पुरुषों के मस्तिष्क में कुछ अंतर होते हैं. औसतन पुरुषों का मस्तिष्क अपेक्षाकृत बड़ा होता है. व्यक्तिगत मस्तिष्क के अंदरूनी इलाके भी औसत आकार, संपर्कों के घनत्व और रिसेप्टरों के प्रकार और संख्या में भी अलग अलग होते हैं. फिर भी, शोधकर्ता पुरुष दिमाग या स्त्री दिमाग को सटीक रूप से चिन्हित नहीं कर सकते हैं. प्रत्येक मस्तिष्क बिल्कुल खास और अलग होता है, बल्कि वह विभिन्न “पुरुष” और “स्त्री” हिस्सों की एक पच्चीकारी की तरह अधिक दिखता है.
तेल-अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में यह सारा उल्लेख आया है. अध्ययन में शामिल 1400 मस्तिष्कों में से एक चौथाई मस्तिष्कों में सेक्स का यह पैचवर्क दिखता था. यानी चीजें सिर के भीतर भी जटिल बनी हुई हैं!
ट्रांस समूहों के व्यक्तियों के मस्तिष्क पर भी यही बात लागू होती है, जिनका अध्ययन ज्यादा लक्षित ढंग से हुआ है. एक व्यक्तिगत मस्तिष्क कैसा दिखता है, इस लिहाज से ट्रांसजेंडर कभी कभी अपने कथित जेंडर और कभी कभी अपने नियत जेंडर के करीब होते हैं.
यह कहना सही है कि यौन लक्षणों या यौन पहचान की कोई विशुद्ध बाइनरी नहीं होती है. इस बारे में तमाम कथित “जैविक” या बायोलॉजिकल दलीलें विज्ञान की मौजूदा धारा से मेल नहीं खाती हैं.
सेक्स और जेंडर वैसे ही जटिल और परिवर्तनशील मुद्दे हैं, जैसे कि उन्हें धारण करने वाले इंसान (और चूहे और अन्य जानवर.)